Best Damini Movie Dialogues: Inspiring Quotes
दामिनी सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन थी। इस फिल्म ने समाज में दबे हुए सवालों को जोर से उठाया और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद की। संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों को झकझोर कर रख दिया। शबाना आज़मी की दमदार अदाकारी ने तो जैसे फिल्म को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उनके द्वारा निभाए गए किरदार दामिनी ने लाखों महिलाओं को प्रेरणा दी। फिल्म के डायलॉग्स आज भी उतने ही प्रभावशाली हैं जितने पहले थे। फिल्म देखने के बाद भी ये डायलॉग्स कानों में गूंजते रहते हैं।
तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख मिलती रही है, मगर इंसाफ नहीं मिला माय लॉर्ड, इंसाफ नहीं मिला!
ये ढाई किलो का हाथ जब किसी पे पड़ता है ना, तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।
आप लोग यहाँ बैठकर दारू पी रहे हैं, वहाँ बाहर एक औरत को जलाया जा रहा है।
जो डर गया, समझो मर गया!
इंसाफ वो कचहरी में मिलता है जहाँ सच को साबित करने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ता है?
मैंने अपने बेटे को मारा है, क्योंकि वो गलत था।
सच को एक दिन झूठ से जीतना ही होता है।
कानून अंधा होता है, मगर लोग नहीं!
इस घर में जो कुछ भी हो रहा है, वो गलत है।
अगर आप में जरा भी इंसानियत है, तो आप इस केस को छोड़ दें।
एक औरत की इज्जत और इंसाफ के लिए मैंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है।
किसी भी औरत की आबरू उसकी जिंदगी से बढ़कर होती है।
ये लोग मुझसे मेरी आवाज छीनना चाहते हैं, मगर मैं चुप नहीं रहूँगी!
औरतें अब कमजोर नहीं रही हैं, वो अब अपने हक के लिए लड़ सकती हैं।
अगर अदालत में भी इंसाफ नहीं मिलेगा, तो लोग कहां जाएंगे?
जज आर्डर आर्डर करता रहेगा … और तू पिटता रहेगा
वक़्त पे शादी न करो … तो आदमी बेहक ही जाता है
ऐसे खिलौने बाजार में बहुत बिकते है …मगर इस से खेलने के लिए जोह जिगर चाहिए न … वह दुनिया के किसी बाजार में नहीं बिकता … मर्द उसे लेकर पैदा होता है
मैदान में खुले शेर का सामना करोगे … तुम्हारे मर्द होने की गलतफमी दूर हो जाएगी
चिल्लाओ मत … नहीं तोह ये केस यहीं रफा दफा कर दूंगा … न तारीख न सुनवाई, सीधा इन्साफ वह भी तबरटॉप
बिजली का वो झटका लगेगा … की तू झटकना भूल जायेगा
जी करता है … तुम्हारी हर ख्वाइश, हर इच्छा को अपना मकसद बना लू
प्यार तोह वो वरदान है … जो किस्मत वालो को मिलता है
सच बोलने से कभी किसी का नुक्सान नहीं हुआ है … और न ही हो सकता है
ऐसी नस दबाऊँगा की चींख निकल जायेगी
कभी-कभी बरसों साथ रहने के बाद भी कोई रिश्ता नहीं बनता, कोई पहचान नहीं बनती…और कभी-कभी एक ही मुलाकात में ऐसा लगता है, जैसे कि बरसों से जानते हो।
दुनिया की हर अदालत से बड़ी एक अदालत है…वह है इंसान का अपना ज़मीर।
यह अदालत है, कोई मंदिर या दरगाह नहीं जहाँ मन्नतें और मुरादें पूरी होती हैं… यहाँ धूप-बत्ती और नारियल नहीं… बल्कि ठोस सबूत और गवाह पेश किए जाते हैं।